भूत भगाओ मन्त्र
दिनकर के आगमन का संदेशा मिलते ही प्रकृति ने एक नए दिन की घोषणा कर दी। रोज की तरह सूर्य देव अपने रथ पर आरूढ़ हुए तो पूरा जगत प्रकाशित हो गया। देखने जाए तो सूर्य का उदय ही सहज प्रकाश का काम करता है। भले ही फिर जन्मांध उस सूर्य को स्वीकार करे कि न करे। आकाश में सूर्य एक हकीकत है, सत है; एक अविवादित वास्तविकता है।
ऐसे सुप्रभात की मंगल बेला में चेतक सूर्य का प्रकाश भी जिनके केवलज्ञान के आगे फीका पड़ता है वैसे वीतरागी सर्वज्ञ भगवान की पूजन हेतु जिनमंदिर गया। जिनालय के मुख्यद्वार पर ही उसे पंडित जी के दर्शन हुए। आशीर्वाद लेने के लिए जब वह निचे झुका तब पंडित जी को अपनी दिव्य दृष्टि से उसके सर पर कुछ अस्वाभाविक तत्त्व दिखा।
गंभीरता भरे अचंबे से पंडित जी बोल उठे - “बेटा चेतक! हमे तुम्हारे सिर पर भूत का साया मंडराता हुआ दिखाई दे रहा है। वह तुम्हारे बालों के बीच मस्तिष्क के मध्य में घर बनाए बैठा हैं।”
चेतक चौक कर बोला - “ क्या? यह कैसे हो सकता है?”
“सत्य कह रहा हूँ। तुम्हारी आँखे कमजोर, लाल और अशुद्धि से भरी हुई है। प्रति समय तुम्हे कुचन का अनुभव होता होगा। यह दृष्टि का विकार ही तो उस भूत के होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है!”
“पर पंडित जी! मेरी आँखे तो बचपन से ऐसी ही हैं! मेरे परिवार में सबकी ऐसी ही हैं। और तो और हमारी जीव-विज्ञान (बायोलॉजी) की पुस्तिका में भी आँखों का स्वरुप लाल होता है ऐसा ही लिखा है।”
“बेटा, समझो! व्यंतर स्वभाव से ही कौतुहली होते है। तुम उन्हें जानते नहीं हो! देखो तो कैसे यह सर पर से अपने काले कलूटे हाथ निचे लम्बे करके तुम्हारे नेत्रों के आगे उसका विकृत यन्त्र लगा रहा है। जिसके द्वारा तुम जो भी देखते हो सब कुछ उल्टा-पुल्टा दिख रहा है। इसका निवारण करने में ही तुम्हारी भलाई है बेटा”, पंडित जी ने कहा।
चेतक हंसकर बोला - “हाहा! पंडित जी! आप भी अच्छा उपहास करते हो। मेरे जैसा शा ंत और सुशिल व्यवहार करने वाले लड़के के पीछे कौनसा भूत पड़ेगा? भूत वूत कुछ नहीं होता, बस यह तो मन का भ्रम है, भ्रम!”
पंडित जी ने स्थितिकरण करते हुए कहा - “देखो, तुम मेरी बात मानो या न मानो; उससे सच्चाई बदल नहीं जायेगी। और जो तुम्हे विश्वास नहीं होता तो मैं तुम्हे एक “भूत भगाओ मन्त्र” देता हूँ उसे पढ़ना। उसे पढ़ते ही वह भूत काँपने लगेगा और तुम्हारी दृष्टि में जो उसका प्रभाव हैं, वह दूर होता दिखाई देगा। जो तुम इस मन्त्र की सच्चे मन से साधना करोगे तो भूत भाग जायेगा।”
चेतक को इस बात पर बिलकुल विश्वास नहीं हुआ। पर भले ही उसे यह भूत-वुत पर कोई भरोसा नहीं था, पर पंडित जी के प्रति विनय होने से वह हाँ में हाँ भरकर घर आ गया। घर आकर वह सोचने लगा -
“क्या सच में मेरी आँखों में कुछ दोष है? मुझे तो ऐसा नहीं लगता।”
“पर हो सकता हैं उनकी बाते सही हो? नहीं नहीं! ऐसा थोड़ी होगा? ऐसा होता तो मुझे आज तक पता क्यों नहीं लगा? मुझे किसीने कभी यह बात क्यों नहीं कही?”
वह अपना मुख आईने में देखकर विचारने लगा -
“मेरी आँखे लाल भले हो पर सब तो सीधा दिखाई दे रहा है। सबसे ऊपर २ पैर, बीच में पेट और निचे दो हाथ और सर के आधार से मैं खड़ा हूँ। ऊपर जमीन होती हैं, जिसके आधार से पेड़ पौधे होते है। निचे से सूर्य उगता है और पूरी दुनिया में प्रकाश कर देता है।”
“हाँ! पंडित जी ने कहा था कि यह भूत मेरे सर पर रहता हैं। एक काम करता हूँ इसे मैं धो देता हूँ। हो सकता हैं वह मेरे बालो के आधार से रहता हो? एक काम करता हूँ मेरे बाल कटवा देता हूँ।
“वैसे पंडित जी की आँखे भी कहाँ सफ़ेद दिख रही थी? पर चलो आँखे लाल होना कोई दोष है तो एक काम करता हुँ, आँखे ठीक से धो देता हुँ और अच्छे से सो जाता हुँ।”
चेतक ने ऐसे अनेक उपाय किये। स्वयं की चिकित्सा से कुछ संतोष नहीं हुआ तो वह अनेक अन्य वैद्य, मांत्रिक, यांत्रिक, तांत्रिक, योग साधक, वैज्ञान िक आदि को भी मिला। सबने यही कहा कि उसकी दृष्टि में कोई दोष नहीं हैं। चेतक को इन सब से मिलकर इतना तो समझ आ ही गया कि इन सब की दृष्टि भी उसके जैसे ही हैं! चेतक ने वह मन्त्र पढ़ने के अलावा इस भूत को भागने के सारे टोटके अपना लिए। पर कुछ हाथ नहीं आया।
इस बात को कई महीने हुए। अब तक तो वह भूत के बारे में भूल भी गया था। कैसे याद आता? उसे वह भूत के अस्तित्व का और अपनी उलटी-पुल्टी दृष्टि का भान कहाँ था? पर एक बात तो तय थी, पंडित जी की बात से चेतक को अपनी आँखों के स्वास्थ्य का पहले जितना विश्वास नहीं था।
रात्रि का समय था। चेतक को अपने मित्र के घर से से निकलने में बहुत देर हो गयी थी। उसकी गाडी जब एक गली से निकल रही थी तो वहाँ के कुत्ते अकारण ही उसकी गाड़ी के पीछे पड़ गए। व्यर्थ ही वह जोर-जोर से भोंकने लगे। वह तो ऐसे भोंक रहे थे कि जैसे आज तो वे सब चेतक के घर तक उसका पीछा करेंगे और उसे काटकर ही मानेंगे।