आप कुछ भी कहो (पद्य)
कथा १
सभाजन -
“तुम्हारे गुरु तो कोढ़ी होते, अशक्त और सब रोगी होते,
तुम कहते तो उपकारी इन्हे? रोग अपना तो पहले दूर करे!”
श्रेष्ठिराज -
“हे गुरुवर! यह अपमान सह लेता कैसे,
धन्य दिगंबर धर्म ध्वजा को मैं झुकने देता कैसे?
भावनाओ में आ मैंने कह दिया - ‘कर सकते सब जो चाहे वे’,
‘होते नहीं कोढ़ी’ - यह कह दिया, भगवन! आप ही अब कुछ करे!”
आचार्य वादिराज -
“अकर्ता हूँ, अभोक्ता हूँ, शरीर से मेरा अत्यन्ताभाव,
रोग शरीर का, वह ही जाने, मैं उसमे क्या करुँ कुछ काम,
धर्मानुरागवश असत्य न कहना, वस्तु धर्म अनुरूप हो वयना,