अहिंसा: भगवान महावीर की दृष्टि में
भगवान महावीरने अहिंसा का बहुत ही सूक्ष्म और प्रमाण बताया हैं। ड ॉ. भारिल्ल जी इस प्रश्न से बात को उठाते हैं कि क्या आज भी भगवान महावीर के बताये गए सिद्धांत और अहिंसा के सन्देश उप तू डेट हैं? अनेक उदहारण से वे ये बात की पुष्टि करके स्पष्ट करते हैं।
निष्कर्ष बस इतना हैं की भगवान महावीर ने अहिंसा का अर्थ - रागादि विभावो का आत्मा में उत्पन्न न होने को कहा हैं।
अभी रागादि आत्मा में उत्पन्न होते हैं; और उसे ही हिंसा कहते हैं।
चूँकि आत्मा तो आज भी वही हैं जो अनादि से था, और अनंत तक यही रहेगा; तो इस आत्मा में जो रागादि भाव रूप हिंसा हो रही हैं वह भी अनादि से हो रही हैं और भगवान महावीर की नहीं बात ह्रदय में नहीं उतारी तो अनंत काल तक जीव हिंसा करता रहेगा!
आत्मा का अनादिअनंतपना ही भगवान महावीर के सिद्धांतों की उपयोगिता को अनादि-अनंत काल की validity वाला सिद्ध कर देता हैं; और जितने भी तीन काल में जीव मोक्ष जायेंगे वे यही अहिंसा के उपदेश से जायेंगे अन्यथा नहीं!
इस पुस्तक में हिंसा के अनेक भेद की चर्चा की गई हैं; जैसे द्रव्य-भाव आदि। प्रेमभाव को भी अहिंसा सिद्ध कर दिया हैं, बताओ! ‘राग’ की तो बहुत ही गहराई से चर्चा करके सत्य बात को स्पष्ट कर दिया हैं।
क्यों राग की उत्पत्ति हिंसा हैं? अरे इस जीव को दूसरे की हिंसा ही दिखती हैं; पर क्या जो इन विभावो से अनादि से स्वयं की हिंसा और स्वभाव का घात हो रहा हैं उसका चिंतवन आजतक नहीं किया!
इस प्रकार, बहुत ही सुगम उदाहरणों से और अनेक तर्कों से भगवान महावीर जो अहिंसाधर्म का उपदेश दिया हैं उसको अत्यंत संक्षिप्त सार-रूप प्रस्तुत करके सचमे अद्भुत तत्वज्ञान परोसा हैं।